देसी आंटी के साथ मेरी पहली चुदाई

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मैंने कामुक्ताज डॉट कॉम पर प्रकाशित बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं. इनमें से मुझे कुछ हिंदी सेक्स स्टोरीज तो बहुत ही हॉट लगीं, जिनको पढ़ कर मुझे कई कई बार मुठ मारनी पड़ी. इस तरह की कामुक देसी चुदाई कहानियों को पढ़ने के बाद और काफी सोचने के बाद आज मैं भी अपनी देसी चुदाई की कहानी लिख रहा हूँ.

आज मैं राज 40 साल का मर्द हूँ व भोपाल के पास एक छोटे से कस्बे में अकेला रहता हूँ. मेरी जॉब की वजह से मेरी फैमिली मेरे पैतृक घऱ में रहती है. वैसे तो अब तक मैं 5 चूतों का स्वाद ले चुका हूँ लेकिन ये कहानी मेरी पहली चुदाई की है जो मैंने अपने साथ किराये पे रहने वाली रेनू आंटी के साथ की.

बात उन दिनों की है, जब मैं जवानी की दहलीज पर था और गाजियाबाद में रहता था. जिस घर में हम किराये पे रहते थे, उसके ऊपर के एक रूम वाले हिस्से में एक परिवार रहने आया. इस छोटे से परिवार में मियाँ बीबी और 3 साल का बेटा था. आंटी प्रेग्नेंट थीं, तीन महीने बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया. अंकल अक्सर टूर पे रहते या शराब के नशे में टुन्न रहते थे. मेरी उनसे जान पहचान हो गई और आंटी मुझे अपने घर जैसा मानने लगीं.

अंकल के टूर के साथ इस चुदाई की कहानी शुरूआत हुई.. जब आंटी ने मुझे ऊपर सोने के लिए बोला. मैं रात में सोने गया तो उस रूम में डबलबेड के बाद कोई दूसरा बेड डालना मुश्किल था. मुझे आंटी ने अपने डबल बेड पे सोने के लिए बोला.
मैं रात में लुंगी पहन कर सोता था. मैं उनके बेड पर लेटा, मेरे बाजू में बेबी, फिर रेनू आंटी लेट गई थीं. आंटी बहुत गहरी नींद में सोती थीं.

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रात एक बजे बेबी के रोने से मेरी नींद खुल गई, बेबी रो रही थी और आंटी सो रही थीं. जब बेबी के रोने की आवाज से आंटी नहीं उठीं, तो मैंने आंटी को जगाने की कोशिश की, लेकिन बेकार. मुझे उन पर बहुत गुस्सा आया.
फिर मैंने सोचा बेबी भूखी है शायद इसे दूध पीना है, मैं पिला देता हूँ. मैंने आंटी का सामने से खुलने वाले गाउन के बटन खोल कर एक बूब बाहर निकाला और बेबी के मुँह में लगा दिया, लेकिन बेबी बहुत छोटी थी और आंटी के बूब बहुत भारी थे.

मैंने फिर से बूब पकड़ कर बेबी के मुँह में लगा दिया, लेकिन इस बार मैंने बूब नहीं छोड़ा और बेबी को आंटी के बूब पकड़ के दूध पिलाना शुरू कर दिया.
उफ्फ्फ… वो अहसास उनके मस्त बड़े बड़े चूचे एकदम नर्म और मुलायम, दूध से भरे हुए.. मुझे बहुत मजा आ रहा था.

इसके बाद गर्मी के मौसम के कारण मैं रोज छत पे ही सोता था और मेरा बिस्तर आंटी के बिस्तर के साथ ही बिछता था, जिससे मुझे रोज बेबी को आंटी के चूचे पकड़ के दूध पिलाने का मौका मिलने लगा.

अंकल तो वैसे भी नशे में सोते थे या कभी कभी आंटी को रूम में बुला कर जल्दी जल्दी चुदाई कर देते, जो मैं खिड़की से देख लेता था. आंटी की चुदाई के बाद अंकल गहरी नींद में सो जाते. आंटी का रस निकला या नहीं, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता.

एक दिन अंकल को एक दो दिन के लिए बाहर जाना था, तो मैं ऊपर छत पे आंटी के साथ सोया हुआ था. अचानक बारिश होने लगी. तेज बारिश मैं जब तक हम बिस्तर समेत के रूम में पहुंचे, तब तक हम दोनों भीग गए और मैं कपड़े बदलने नीचे अपने रूम की तरफ जाने लगा.
तो आंटी बोलीं- नीचे जाकर सबको जगाने से अच्छा अपने अंकल की लुंगी पहन के सो जाओ.
“लेकिन आंटी.. मेरा तो अंडरवियर भी गीला हो गया है.”
“तो क्या हुआ.. ऐसे ही लुंगी पहन ले, सोना ही तो है.”

बस मैं अंकल की लुंगी पहन के लेट गया आंटी भी गीली थीं और बाथरूम तक जाने के लिए उन्हें बाहर से होकर जाना पड़ता, जहां बारिश हो रही थी तो आंटी वहीं रूम में ही कपड़े बदलने लगीं.

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उन्होंने अपना पेटीकोट अपने दाँतों में दबा के अपना ब्लाउज निकाला और फिर जैसे ही सूखा हुआ दूसरा पेटीकोट उठाने के लिए झुकीं, तो उनके दाँतों में दबा हुआ पेटीकोट दाँतों से निकल के नीचे गिर गया और आंटी पूरी तरह से नंगी मेरे सामने खड़ी थीं.

आज इतने साल बाद भी वो नजारा नहीं भूलता वो गोरा मांसल बदन, चिकनी केले के तने जैसी जाँघों में आंटी पूरी कयामत लग रही थीं. मेरी नजरें आंटी के बदन पे टिक गईं. मैं बल्ब की रोशनी में आंटी का नंगा बदन देखता ही रह गया. आंटी ने जल्दी से पेटीकोट उठा के पहना, ऊपर से सामने से पूरा खुलने वाला गाउन डाला और लाइट बंद करके सोने के लिए बिस्तर पे आ गईं.

एक ही बिस्तर होने के कारण मेरे और आंटी के बीच में बेबी थी. नींद मुझसे कोसों दूर थी. थोड़ी देर में आंटी सो गईं.

हमेशा की तरह फिर से बेबी ने रोना शुरू किया और मैंने आंटी के चूचे निकाल के बेबी को दूध पिलाना शुरू कर दिया. लेकिन आज आंटी का नंगा बदन मेरी आँखो के सामने घूम रहा था. मेरे हाथ आज बेकाबू थे.. मैं आंटी के मम्मों को जोर से दबाने लगा. लेकिन जैसे आटी को तो कुछ हो न रहा हो, वो सोती रहीं.

कुछ देर बेबी ने दूध पीना बंद कर दिया और आंटी के चूचे से दूध की तेज धार मेरे मुँह में आ रही थी. मैंने दूध का स्वाद लिया और फिर धीरे से आंटी के और नजदीक आ गया.

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मैंने आंटी का एक आम अपने मुँह में भर लिया और खुद मस्त होकर आंटी का स्तन चूसने लगा. परंतु मुझे डर भी रहा था कि कहीं आंटी जाग गईं तो डांट ण पड़ जाए इसलिए बेबी के सोने के कुछ पल बाद मैं भी सो गया.

कुछ देर ही हुई कि मुझे लगा मेरा दम घुट रहा है. मुझे सांस लेने में तकलीफ हो रही है. मेरी नींद खुली और मेरे होश उड़ गए. बेबी जो मेरे और आंटी के बीच में थी, उसकी जगह अब आंटी थीं.

आंटी के गाउन के ऊपर के बटन ओपन थे. आंटी मेरे बदन से चिपकी हुई लेटी थीं और उनके बड़े बड़े मम्मों के बीच में मेरा फेस दबा था, जिसके कारण मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. आंटी का हाथ मेरे ऊपर था. मैंने किसी तरह खुद को आजाद किया. रेनू आंटी के भरे मम्मों देख कर मेरे अन्दर वासना का तूफान उठने लगा. मुझे लगा आंटी नींद में हैं.

मैं रेनू आंटी के मम्मों को पकड़ कर दबाने लगा.. तो उनके दूध की धार मेरे मुँह से टकराई. अब मैं रेनू आंटी का एक चूचे को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा. रेनू आंटी ने मेरा सर अपने चूचे पे दबाया, तब मुझे पता चला कि मेरी ये सोच कि रेनू आंटी गहरी नींद में हैं, एकदम गलत थी.

“आह.. कसके चूसो.. बहुत दर्द हो रहा है इनमें.. आज मेरे ये बहुत भारी हो गए हैं.. आह दूध बहुत भर गया है.. इनको चूस के सारा दूध निकाल दो. तुम रोज स्वाति को दूध पिलाते हो ना, फिर भी खत्म नहीं होता. आज तुम पूरा चूस के पी जाओ.”
“आप सो नहीं रही हो?”
“मैं सो रही थी लेकिन जब आज तुम स्वाति को दूध पिलाते हुए बहुत जोर से मम्मे मसल रहे थे, फिर खुद भी मेरे मम्मे चूसने शुरू किए तो मेरी नींद खुल गई थी.”

“आपको पता था मैं रोज आपके मम्मे निकाल के स्वाति को दूध पिलाता हूँ, फिर भी आपने कभी बोला नहीं?”
“तुम स्वाति को दूध पिलाते थे, मुझे अच्छा लगता था इसलिए कभी कुछ नहीं बोला. इसके बाद रोज बचा हुआ दूध मुझे अपने हाथ से निकालना पड़ता था. यदि न निकालो तो मेरे निप्पलों में दर्द होने लगता था. आज सुबह मैं खुद अपना दूध निकाल नहीं पाई और स्वाति पूरा दूध नहीं पीती है, इसलिए मेरे चूचे बहुत भारी हो गए थे. एक बार मैंने सोचा दबा कर दूध निकाल दूँ, लेकिन तुम बहुत अच्छे से चूसते हो इसलिए सोचा आज तुमसे ही चुसवा लूँ. जब तुम सोये तो मैंने स्वाति को दूसरी तरफ लिटा दिया और खुद तुम्हारे पास लेट गई. गाउन के बटन तो तुमने पहले ही खोल दिए थे.”

मैं भौचक्का सा रेनू आंटी की तरफ देख रहा था.
“अब देख क्या रहे हो.. चूस के इनका दूध निकालो.. बहुत दर्द हो रहा है.”

मुझे आंटी की तरफ से ग्रीन सिगनल मिल चुका था इसलिए मैं भी बिना देर किए उनके चूचे एक एक करके चूसने लगा.
“आह.. ज़ोर से चूसो.. पूरा दूध निचोड़ के चूस लो.. आह कस के दबाओ न..”
जितना आंटी मुझे उकसातीं, मैं उतनी कस के उनके मम्मे मसल के चूसने लगा. आंटी भी अब उत्तेजित होकर सिसकियां लेने लगीं और मेरा सर कसके अपने मम्मों पे दबाने लगीं.

आंटी का पूरा बदन गर्म होने लगा था. अब तो आंटी ने अपने गाउन के बाकी बटन भी खोल दिए और आंटी पूरी नंगी मेरे सामने लेटी हुईं, अपने मम्मे मुझसे चुसवा रही थीं.

मुझे महसूस हुआ कि आंटी का हाथ मेरी लुंगी हटा के मेरे लंड पे पहुंच गया था. आंटी मेरे लंड को मसलने लगीं. मुझे आंटी के हाथ अपने लंड पे अच्छे लग रहे थे. वो जितना मेरे लंड को मसलतीं, मैं उतनी कसके उनके मम्मे मसलता और चूसने लगता.

आंटी बहुत गर्म हो गई थीं, उन्होंने मेरी लुंगी निकाल दी और बोलीं- मेरे ऊपर आ जाओ.
“आप दबोगी..!”
“जब तेरे अंकल नहीं दबा पाए, तो तुझसे क्या दबूंगी. जल्दी कर.. ऊपर आ मेरे पूरे बदन को चूस डाल.. तेरे अंकल तो जल्दी से लंड झाड़ के सो जाते हैं, मैं गरम रह जाती हूँ. आज तू मेरी गर्मी निकाल दे.”
“मैं आपकी गर्मी कैसे निकाल पाऊँगा.. कूलर चला लो, गर्मी निकल जाएगी.”
“मैं तुझे सिखाऊँगी कि कैसे औरत की गर्मी निकाली जाती है. जैसा मैं बोल रही हूँ बस तू वैसा करता जा. जल्दी से मेरे ऊपर आकर मेरे मम्मे कसके मसल और पूरे बदन को चूसना शुरू कर दे.”

अब मेरा काम सिर्फ रेनू आंटी के ऑर्डर फ़ॉलो करना था. मैं आंटी के ऊपर आकर दोनों हाथों से उनके मम्मे मसलते हुए मम्मे चूसने लगा. रेनू आंटी के हाथ मेरे लंड से खेल रहे थे. उन्होंने अपने दोनों पैर फैला दिए थे और मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पे रगड़ना शुरू कर दिया था.

मुझे ऊपर मम्मों को मसलने और नीचे रेनू आंटी की चूत से रगड़ खाता मेरा लंड बहुत मजा दे रहा था. फिर अचानक आंटी ने मेरा लंड अपनी चूत के अन्दर निगल लिया, मुझे लगा जैसे मेरा लंड किसी बड़ी सी गुफा में घुस गया हो. रेनू आंटी की चूत भट्टी की तरह गर्म थी. आंटी नीचे से अपनी गांड उठा के मेरा लंड अन्दर लेने लगीं. जब रेनू आंटी नीचे से गांड उठातीं तो मेरी गांड भी अपने दोनों हाथों से कसके दबा देती थीं, जिससे मेरा पूरा लंड उनकी चूत में घुस जाता.

फिर रेनू आंटी मुझे झटके मारने को बोलने लगीं. अब तक मैं भी बहुत कुछ सीख गया था. मैंने जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए. कुछ देर बाद अचानक मुझे लगा कि आंटी का बदन अकड़ रहा है और फिर लगा जैसे आंटी ने जैसे बिस्तर पे पेशाब कर दी हो, मेरा पूरा लंड रेनू आंटी की पेशाब से भीग गया.

आंटी का बदन ढीला पड़ गया.

“ये क्या..? आपने तो बिस्तर पे सूसू कर दी?”
“ये सूसू नहीं.. औरत की गर्मी है, जल्दी से इसे चूस के पी जा.. इससे तेरे शरीर में भी गर्मी आ जाएगी. तुझमें किसी भी औरत की गरमी निकालने की ताकत आएगी. फिर मैं तेरी गर्मी पियूंगी.”

मैंने भी बिना देर किए रेनू आंटी की चूत चूसी. मुझे चूतरस का टेस्ट अच्छा लगा और मैंने आंटी की चूत चाट के सारा पानी साफ़ कर दिया।

फिर रेनू आंटी ने मेरा लंड अपने मुँह में भर के चूसना शुरू कर दिया. मुझे अपना लंड चुसवाने में मजा आ रहा था. मेरे हिप्स अपने आप हिलने लगे, मेरा पूरा लंड आंटी के मुँह की सैर कर रहा था. चूत से ज्यादा मजा मुँह चोदने में आ रहा था. मुझे लगा मेरी सूसू निकलने वाली है.

“आंटी, मेरी सूसू निकलने वाली है.”
“ये सूसू नहीं.. तेरी गरमी है निकाल दे मेरे मुँह में..”
मैंने तेज धार के साथ रेनू आंटी के मुँह मैं अपनी गरमी निकाल दी. आंटी मेरे लंड से निकली धार पी गईं.

उस रात हमने सुबह 4 बजे तक 3 बार चुदाई की और हर बार एक दूसरे का रस पिया.

यह थी मेरी पहली देसी चुदाई की कहानी. आपको कैसी लगी, ये बताने के लिए कमेंट करें.