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हैल्लो फ्रेंड्स!
मेरी पिछली कहानी आपने पढ़ी
भाई के साथ मस्ती
मैं एक बार फिर से हाजिर हूँ एक नयी कहानी लेकर जो कि मेरी एक फ्रेंड की है। उसके कहने पर मैं ये कहानी आप लोगों तक पहुंचा रही हूँ। मज़ा लीजिये इस कहानी का, आगे की कहानी मेरी फ्रेंड के शब्दों में ही सुना रही हूँ।
मेरा नाम रचना है. हम दो बहनें हैं, मेरी बड़ी बहन कुसुम जो मुझसे 7 साल बड़ी है। मैं घर में सबसे छोटी हूं और शुरू से सबकी बहुत दुलारी रही हूँ।
बात उस वक्त की है जब मैं 18 साल की थी। हमारे यहाँ एक मुंहबोली बुआ जी का आना जाना था. बुआजी का हम सबके साथ बहुत लगाव था, उनका घर हमारे घर से आगे कुछ दूरी पर था, बुआ जी का एक ही लड़का था जिसका नाम था विनय. जिसकी उम्र उस वक्त शायद 21 की रही होगी। फूफा जी का निधन पहले ही हो चुका था। विनय की एक गारमेंट की दुकान थी और बुआजी को पेंशन मिलती थी। बुआ जी और विनय अक्सर घर आते रहते थे. हम सबसे उनकी खूब बनती थी।
मैं दीदी के साथ हमेशा रहती थी. दीदी भी मुझे बहुत प्यार करती थी। मैं देखा करती थी कि जब बुआ जी और विनय घर आते तो विनय भैया हमारे ही रूम में आ जाते और बातें करते रहते थे, गेम खेलते रहते थे. अक्सर विनय भैया मेरी नजर बचाकर दीदी से कुछ छेड़छाड़ भी करते रहते थे और दीदी मेरी नज़र बचाकर मुस्करा देती, अगर कभी मैं देख लेती तो दोनों मुझे फुसलाने लगते।
उस वक्त मैं इन बातों को नहीं समझती थी। मैंने कई बार विनय भैया को दीदी से लिपटते देखा था.
एक बार विनय भैया हमारे साथ टीवी देख रहे थे. दीदी विनय भैया से बिल्कुल सटकर बैठी थी. मैं टीवी में मशगूल थी. मगर वो दोनों कुछ खुसर-फुसर बातों में लगे थे.
तभी मैं पेशाब करने के लिए बाथरूम चली गई. जब मैं वापस कमरे में आई तो दीदी विनय भैया के सीने से लिपटी थी और विनय भैया दीदी के होंठ चूस रहे थे. मुझे अचानक आया देखकर दोनों घबरा कर अलग हो गये और फिर मुझे दोनों ने अपने पास बुला लिया.
मुझे प्यार से बैठाकर बोले- तुम किसी से कुछ कहना मत!
फिर मुझे एक हजार रूपये भी दिये. मेरा तो लड़कपन था. रूपये पाकर मैं खुश हो गई.
फिर तो मुझे अक्सर कभी दीदी से कभी विनय भैया से पैसे मिलने लगे. मैं खुद में मस्त रहती और वे दोनों मेरे सामने भी सब बातें करते रहते। पर जल्दी ही दोनों के चक्कर के बारे में सबको मालूम हो गया।
दीदी और विनय भैया घबराने लगे. मैं भी न जाने क्यों नर्वस हो रही थी. खैर बुआजी का व्यवहार और पापा व मम्मी की सूझ-बूझ से दीदी की सगाई विनय भैया के साथ कर दी गई। अब विनय भैया विनय जीजू बन गये थे. दीदी की ससुराल तो पास में ही थी और मेरा लगाव तो था ही दीदी और विनय जीजू से तो मैं अक्सर दीदी के घर जाती रहती थी।
धीरे-धीरे एक साल बीत गया. इस दौरान बुआ जी का भी लम्बी बीमारी के बाद स्वर्गवास हो गया।
एक दिन शाम को मैं दीदी के घर गई तो वहाँ जीजू की ही हमउम्र गठीले बदन का एक युवक जीजू के साथ बैठा हुआ था. मुझे देखते ही दोनों ठिठके, अगले ही पल जीजू मुस्कराते हुए बोले- आओ रचना, बैठो!
मैं उनके साथ बैठ गई.
फिर जीजू ने बताया- यह मेरा दोस्त अनन्त है. तुम इसे भी जीजू बोल सकती हो।
तभी दीदी चाय लेकर आ गई और मुझे देखकर हड़बड़ा गई. मुझे देखकर सबका हड़बड़ा जाना मुझे अजीब लगा. खैर उसके बाद सबने चाय पी. फिर दीदी खाना बनाने लगी और हम लोग टीवी देखने लगे। मैंने देखा वे सब मुझसे छुपाकर कुछ बात कर रहे थे. फिर सबने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे।
अभी तक मैं जब भी दीदी के यहां जाती थी तो दीदी जीजू के साथ बेड पर ही सोती थी इसलिए मैं बेड पर ही सोने लगी. अनन्त जीजू को बगल के रूम में लिटाकर दीदी, जीजू और मैं हमेशा की तरह लेट गये। जीजू दीदी से कुछ बात कर रहे थे।
फिर मैं सोने लगी, दीदी ने गौर से मेरी तरफ देखा और उनको ये लगा कि मैं गहरी नींद में सो गई तब वे बेफिक्र होकर बात करने लगे.
दीदी ने जीजू से कहा- यार आज कुछ करना ठीक नहीं रहेगा, रचना यहीं है।
जीजू- अरे यार, आज पहली बार तो तुमने हां बोली, अब इन्कार मत करो. अनन्त भी आ गया है।
दीदी- क्या करूं, रचना यहीं है।
जीजू- रचना सो गई है. तुम अनन्त के रूम में चली जाओ।
दीदी- नहीं, मैं नहीं जाऊंगी, तुमको जो करना हो करो बाकी सब कैंसिल।
उसके बाद मैंने हल्के से आंख खोलकर देखा तो जीजू मेरी दीदी से लिपटते हुऐ उनको मनाने लगे। मैं चुपके-चुपके सब देख रही थी. आज ये पहली बार मुझे रोमांचक लग रहा था. अब से पहले मैंने कभी गौर ही न किया था। तभी जीजा जी ने दीदी के सब कपड़े अलग कर दिये. अब दीदी केवल पैंटी में थी। जीजू दीदी के दूध चूस रहे थे. साथ ही उनका एक हाथ दीदी की पैंटी के अन्दर चल रहा था। मैं कुछ नहीं जानती थी कि ये सब क्या हो रहा है. मगर वह सब मुझे बहुत रोमांचक लग रहा था। दीदी के दूध गोल और सख्त लग रहे थे।
जीजू की हरकतों से दीदी जल्दी ही कसमसाने लगी और पैरों को फैलाने लगी।
जीजू- जान चली जाओ न … अनन्त के कमरे में, एक बार चुदवाकर देखो, बहुत मजा आयेगा. वो गजब की चुदाई करेगा, मैंने उसका लन्ड देखा है तभी तो बुलाया है।
दीदी कुछ नहीं बोली, बस आंखें बन्द किये हुए कसमसाती रही। तभी अनन्त जीजू हमारे रूम में आ गये।
अनन्त- यार मुझे कितना इन्तजार करवा रहे हो … जब से कुसुम को देखा है लन्ड सम्भल नहीं रहा।
विनय- क्या करूं दोस्त, कुसुम से बोल तो रहा हूं पर वो तुम्हारे रूम में जा ही नहीं रही।
इतना सुनते ही अनन्त जीजू के तेवर बदल गये और अनन्त जीजू मेरी कुसुम दीदी की तरफ मुखातिब होकर बोले- साली, इतना नखरा मत कर वर्ना यहीं चोदना शुरू कर दूगां. देख मेरा लंड कितना ताव में है!
यह बोलकर अनन्त ने अपनी जाँघिया उतार दी।
बाप रे! ये क्या था, मैं देखती रह गई. आज तक मैंने किसी आदमी को नंगा नहीं देखा था. मैं कुछ डरने लगी। मैंने लंड पहली बार देखा था, बड़ा ही भयानक लम्बा, मोटा और डंडे जैसा तना हुआ काले रंग का। मेरी तो सांस थम सी गई, मैं चुप्पी साधकर सब देख रही थी पर किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं था।
अनन्त का लंड विनय जीजू ने थाम लिया और सहलाते हुऐ बोले- कितना मस्त लंड है, आज तुम अपने लंड से मेरी प्यारी कुसुम की दमदार चुदाई करो, हम दोनों कब से यही चाहते हैं।
अनन्त- तो फिर हटो एक तरफ और अपनी बीवी को मेरे हवाले करो।
इतना बोलकर अनन्त जीजू कुसुम दीदी के होंठों को चूसने लगे. साथ ही वो दोनों स्तनों को दबाने लगे। विनय जीजू थोड़ा अलग होकर लेटे रहे. कुछ ही देर में दीदी अनन्त के बदने से बुरी तरह लिपटने लगी.
तभी अनन्त ने दीदी की पैंटी खींच कर फेंक दी. जो मेरे मुंह के पास आकर गिरी. पैंटी बेहद गीली थी और उसमें अजीब सी बदबू आ रही थी। पैंटी फेंकने के बाद अनन्त ने दीदी की जांघों को फैलाया और अपना मुंह उनकी टांगों के बीच में लगा दिया.
कुसुम दीदी बुरी तरह तड़पने लगी। तब मैं नहीं समझ पाई थी कि अनन्त क्या कर रहा है. पर चपड़ चपड़ की आवाज साफ सुन रही थी मैं।
दीदी बुरी तरह तड़पकर लगभग चिल्लाने लगी- जल्दी चोदो मुझे … बर्दाश्त नहीं हो रहा.
उसके बाद विनय जीजू को मेरा ख्याल आया और उन्होंने कहा- अनन्त यार, कुसुम बहुत चुदासी हो रही है इसे कुछ होश नहीं है, इसको यहां चोदना ठीक नहीं है. अगर रचना जाग गई तो मजा खराब हो जायेगा।
इतना सुनते ही अनन्त जीजू ने कुसुम दीदी को गोद में उठा लिया. दीदी नंगी ही थी और अनन्त जीजू की गोद में बड़ी मनमोहक लग रही थी। अनन्त जीजू मेरी दीदी को अपने कमरे में ले गये, अब मेरे पास विनय जीजू शान्त लेटे थे. कमरे में बिल्कुल शांति छा गई थी. तभी अनन्त के कमरे से दीदी की चीख सुनाई दी और जीजू तुरन्त उस रूम की तरफ चले गये।
अब मैं बिल्कुल अकेली थी. कुछ देर में दीदी की कराहट भरी अवाजें आने लगीं, मुझे भी उलझन सी होने लगी। तब मैं चुपके से उठी और उस कमरे की तरफ दबे पांव चल पडी. मैं डर के मारे कांप रही थी पर न जाने कौन सी उत्सुकता थी कि कदम कमरे तक पहुंच गये। दरवाजा बन्द था पर खिड़की पर किसी का ध्यान नहीं था. मैं खिड़की से अन्दर झांकने लगी।
मैंने देखा कि अनन्त जीजू मेरी दीदी की दोनों टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रखे हुए थे और दीदी का सर पकड़े हुए होंठों को चूस रहे थे. वह अपनी कमर को दीदी की कमर पर पटक रहे थे। दीदी बिल्कुल गुडीमुडी हुई अनन्त जीजू के नीचे दबी हुई थी। अनन्त और विनय दोनों ही जीजू मेरी दीदी पर रहम नहीं कर रहे थे। मैं बुरी तरह से डरकर वापस अपने कमरे में आ गई. मेरी दिल जोर से धड़क रहा था. कुछ देर के बाद मेरी धड़कन कुछ कम हो गई.
मगर मुझे चैन नहीं आ रहा था. मैं पसीने-पसीने हो गई। मैं लेटे हुए अनन्त जीजू और विनय जीजू के नंगे जिस्मों के बारे में सोच रही थी. कुछ देर बाद मन नहीं माना और मैं फिर देखने पहुंच गई. अबकी बार तो यकीन नहीं हुआ मुझे अपनी आंखों पर. दीदी अनन्त जीजू से लिपटी हुई हर धक्के पर अपनी कमर उछालते हुऐ बोल रही थी- और तेज चोदो! आह्ह … और तेज करो मेरी जान। तब मुझे समझ आया कि दीदी को कोई तकलीफ नहीं हो रही बल्कि अच्छा लग रहा है.
अब मेरा भी डर कम होने लगा था और मैं लगातार देखने लगी कि कुछ देर बाद अनन्त जीजू और दीदी तेजी से हांफते हुऐ शान्त हो गये. दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे. फिर विनय जीजू, जो उसी बेड पर बैठे थे दीदी को चूमकर उन्होंने पूछा- कैसा लगा जान अनन्त का लन्ड?
दीदी- बहुत पसन्द आया. अनन्त जी ने तो मेरी चूत की सारी तमन्ना पूरी कर दी. मैं तो बहुत थक गई हूं।
अनन्त जीजू हँसते हुऐ बोले- नहीं जी, तुमने पूरी रात चुदवाने का वादा किया था, अभी तो रात बहुत बाकी है।
फिर अनन्त जीजू और विनय जीजू दोनों दीदी से लिपट गये. विनय ने मेरी दीदी की के चूचों को हाथ में ले लिया और उनको दबाने लगे. विनय जीजू कुसुम दीदी के चूचुकों को अपने दांतों से काटने लगे.
नीचे की तरफ अनन्त ने दीदी की चूत में अपनी उंगली डाल दी और उनको अंदर बाहर करने लगे. दीदी की टांगें बेड पर फैली हुई थीं. मैं बाहर खिड़की से खड़ी होकर यह पूरा नजारा देख रही थी.
मुझे डर भी लग रहा था मगर मेरे बदन में एक आग सी भी लगने लगी थी. मैंने अपने बदन पर वहीं खड़ी होकर हाथ फिराना शुरू कर दिया. अनन्त ने मेरी दीदी की चूत में उंगलियों की रफ्तार को तेज कर दिया.
मेरी दीदी के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलना शुरू हो गईं. दीदी अपने हाथों को पीछे बिस्तर की तरफ ले जाकर बेड के सिरहाने को पकड़े हुए थी. दीदी की टांगें अनन्त की उंगलियों की रफ्तार के साथ और ज्यादा फैल रही थीं.
जब कुछ देर के बाद मैंने अपनी सलवार के ऊपर अपनी पैंटी पर हाथ लगाया तो मेरे बदन में एक सरसरी सी दौड़ गई. मेरी चूत में पहली बार मैंने गीलापन महसूस किया था. जब अनन्त ने कमरे के अंदर दीदी की पैंटी को मेरे मुंह पर फेंक दिया था तो मुझे उस पैंटी के अंदर से अजीब सी बदबू आई थी. अब मैं समझ गई थी कि यह बदबू कामरस की होती है.
मुझे सेक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था लेकिन अनन्त और विनय जिस तरह से कुसुम दीदी को अपने नीचे लेटा कर उसके बदन को भोग रहे थे. आज मेरा ज्ञान काफी बढ़ गया था. मैंने पहली बार मर्द के लंड के दर्शन किए थे.
विनय का लंड भी काफी बड़ा था. लेकिन अनन्त के लंड के सामने अगर नापा जाए तो उससे छोटा ही लग रहा था. मेरे चूचों में वहीं पर खड़े-खड़े कुलबुलाहट सी होने लगी थी. मैंने अपनी छाती को वहीं पर दबाना शुरू कर दिया.
जब मैंने अंदर की तरफ दोबारा देखा तो विनय ने अपना लंड कुसुम दीदी के मुंह में डाल रखा था. मेरी दीदी विनय के चूतड़ों को पकड़ कर उसके लंड को अपने मुंह की तरफ धकेल रही थी. विनय ने भी दीदी के बालों को पकड़ा हुआ था और उनके मुंह को अपने लंड की तरफ धकेल रहे थे.
मेरा ध्यान अनन्त पर गया तो उसने दीदी की चूत में अपनी जीभ डाल रखी थी. दीदी अनन्त के सिर को अपनी जांघों के बीच में दबोचने की नाकाम कोशिश कर रही थी क्योंकि अनन्त ने उसकी जांघों को पकड़ कर अपने मजबूत हाथों से विपरीत दिशाओं में फैला रखा था.
दीदी बेड पर बुरे तरीके से तड़प रही थी. अनन्त का लंड बेड के पायदान की लकड़ी पर छू कर बार-बार लग रहा था. उसके लंड में अभी वह पहले जैसा तनाव नहीं था जबकि विनय जीजू का लंड अपने पूरे उफान पर था. उनका लंड किसी डंडे की तरह तनकर कुसुम दीदी के हलक में जाकर लगता हुआ दिखाई दे रहा था. उसके बाद विनय जीजू ने अचानक ही अपने लंड को दीदी के मुंह से निकाल लिया और विनय के हटते ही अनन्त ने भी अपनी जीभ दीदी की चूत से निकाल दी.
अब विनय जीजू दीदी की चूत के पास आ गए थे और अनन्त कुसुम दीदी के मुंह की तरफ चले गए थे. अनन्त के पास जाते ही दीदी ने उसके लंड को पकड़ लिया और अपने हाथ में लेकर उसको सहलाना शुरू कर दिया. कुछ ही पलों के बाद अनन्त का लंड फिर से अपने पहले जैसे तनाव में आकर दीदी के हाथ में भर गया. अनन्त ने दीदी के दोनों तरफ अपने पैरों को रखा और अनन्त की टट्टे दीदी के होंठों के पास आ गये.
दीदी अनन्त जीजू के अंडकोषों को अपने मुंह में लेकर प्यार करने लगी. अनन्त ने अपने हाथों को पीछे लाकर दीदी के चूचों पर टिका लिया और उनको पकड़ने के साथ उनको दबाना और मसलना भी शुरू कर दिया.
नीचे की तरफ विनय जीजू ने दीदी की चूत में अपनी जीभ डाल दी और चूत में उसको अंदर बाहर करने लगे. कुछ पलों तक दीदी की चूत को चाटने के बाद विनय जीजू ने अपने लंड को दीदी की चूत पर रख दिया और उसकी चूत में अपने लंड को अंदर की तरफ धकेल दिया.
दीदी अनन्त के टट्टों के साथ ही चूमा-चाटी में लगी हुई थी. दीदी ने अनन्त के चूतड़ों को अपने हाथों से पकड़ रखा था और वह अनन्त के चूतड़ों की दरार के बीच में उगे बालों में अपनी उंगली को फिरा रही थी. उसके बाद अनन्त ने दीदी के हाथों को अपने हाथों से हटा दिया और एक तरफ आकर दीदी के मुंह में अपने लंड को पेल दिया.
दीदी के मुंह में अनन्त का लंड जाते ही दीदी का चेहरा लाल हो गया. दीदी को शायद सांस लेने में मुश्किल हो रही थी. अनन्त ने अपने लंड को दीदी के मुंह में तेजी के साथ धकेलते हुए अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.
जब अनन्त जीजू का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया तो उसके बाद अनन्त ने दीदी के चूचों को अपने हाथों में भर लिया. हाथों में दबाचकर उन्होंने दीदी के चूचों के बीच में अपने लंड को फंसा दिया और वहीं पर मैथुन करने लगे. अनन्त के चूतड़ दीदी के होंठों की तरफ थे. दीदी शायद अनन्त के चूतड़ों पर पीछे से किस करने में लगी हुई थी. दीदी के हाथ अनन्त की कमर पर थे और दीदी ने दोनों हाथों से अनन्त की कमर को संभाला हुआ था. विनय जीजू ने दीदी की चूत में लंड डालकर चुदाई शुरू कर दी थी.
उसके बाद अनन्त जीजू ने अपने लंड को दीदी के चूचों के बीच से निकाल लिया और एक तरफ हट गए. जब विनय जीजू ने देखा कि अनन्त ऊपर की तरफ से हट चुका है तो उन्होंने भी दीदी की चूत से अपने लंड को निकाल लिया.
उसके बाद अनन्त नीचे की तरफ आ गए और दीदी की टांगों को अपने हाथों में पकड़ कर ऊपर उठा लिया. मैंने सोचा कि शायद अब अनन्त दीदी की टट्टी करने वाली जगह में अपने लंड को डालने की तैयारी में है लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. अनन्त ने दीदी की टांगों को उठाकर अपने कंधों के ऊपर रख लिया और दीदी की चूत के नीचे तकिया लगा दिया.
ऊपर की तरफ विनय जीजू ने फिर से दीदी के मुंह में अपने लंड को डाल दिया जिसको दीदी ने बिना देर किए ही चूसना शुरू कर दिया. विनय के लंड का साइज ज्यादा बड़ा नहीं था इसलिए दीदी उनके लंड आराम से चूस पा रही थी.
बाहर खड़े-खड़े मेरे पैर जवाब देने लगे थे. मेरा पूरा बदन कांप रहा था. मगर फिर भी मेरा मन वहां से हिलने को नहीं कर रहा था. मैं वहीं पर खड़े रहकर देखना चाहती थी कि आगे क्या होने वाला है. दीदी विनय जीजू के लंड को चूसने में मस्त थी और अनन्त ने अपने लंड को दीदी की चूत के छेद पर लगाकर उसको ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया था.
विनय जीजू के झटके दीदी के मुंह में काफी तेज होने लगे थे. जीजू के मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगी थीं. मगर वह तेजी से अपने चूतड़ों को आगे की तरफ धकेल रहे थे और पूरा लंड दीदी के गले में उतार रहे थे. कुछ देर के बाद विनय जीजू ने कुसुम दीदी के सिर को पकड़ लिया. उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह्ह … विनय के मुंह से तेज आवाज निकलने लगी. फिर विनय जीजू के लन्ड से सफेद रस निकलकर दीदी के मुंह पर गिरा और विनय जीजू अलग हट गये.
तब अनन्त और दीदी ने अगली चुदाई शुरू की. अब मुझमें वहाँ खड़े रहने की और हिम्मत नहीं रह गई थी. इसलिए मैं वहाँ से आ गई. अब शायद विनय जीजू भी कमरे से बाहर आने वाले थे. इसलिए भी वहाँ पर खड़े रहना मैंने ठीक नहीं समझा.
जब मैं वापस दीदी और जीजू के बेडरूम में आई तो मेरे पूरे बदन में आग लगी हुई थी. मैंने आते ही दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया. दरवाजे पास खड़ी होकर ही मैंने अपनी सलवार को नीचे किया और अपनी पैंटी को देखा. वह पूरी भीग चुकी थी.
मैंने अपनी पैंटी को नीचे किया और अपनी चूत को धीरे से छूकर देखा. वह फूली-फूली सी लग रही थी. मैंने धीरे से अपनी चूत के फलकों को मसाज देना शुरू कर दिया. मगर कुछ ही पल के बाद मुझे बगल वाले कमरे के दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दे गई. मैंने जल्दी से अपनी सलवार को ऊपर किया, झट से कमरे के दरवाजे की कुंडी को खोलकर बिस्तर पर जाकर लेट गई. मैंने चादर ओढ़ ली थी क्योंकि इस वक्त मैं सोने का नाटक नहीं कर पाती.
कुछ के पल के बाद दरवाजा खुला और तुरंत ही बंद हो गया. शायद विनय जीजू यह चेक करने आए थे कि मैं सो रही हूँ या नहीं. उसके बाद दरवाजा दोबारा बंद हो गया तो मैं धीरे से चादर हटाकर देखा. कमरे में कोई भी नहीं था. मेरा दिल जोर से धड़क रहा था. मैंने जल्दी से अपनी सलवार को बांध लिया और आराम से मुंह खोलकर लेट गई.
मेरी आंखें तो बंद थीं लेकिन अभी भी वह चुदाई का सीन मेरी आंखों में यूं का यूं चल रहा था. मैं बहुत देर तक उन तीनों के बारे में ही सोचती रही. उसके बाद पता नहीं मुझे कब नींद आई.
इस तरह उस रात दीदी की घमासान चुदाई मैंने देखी। लेकिन सारी फिल्म मेरे अलावा किसी ने नहीं देखी. किसी को नहीं मालूम था कि मैंने भी उन तीनों की ये चुदाई देखी। लेकिन तब से मैं दीदी के घर जाने से हिचकने लगी। मगर अनन्त का दीदी के घर पर आना-जाना आज भी जारी है. अब मैं जवान हो चुकी हूँ और सब कुछ समझती हूँ कि अनन्त यहाँ पर क्या करने आता है.
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी. आप नीचे कमेंट करके बताएं.
इस कहानी का अगला भाग : दीदी की चुदाई देख मैं भी चुद गयी